भूलने का बहाना करते, हम भूल सकते तो अच्छा था.
कभी खुद को खोते, सोचते ना मिलते तो अच्छा था.
जमाने को फर्क पड़ता नहीं कोई मिले या बिछड़ जाए,
वो उँगलियो का अधूरा मिलन, ना करते तो अच्छा था.
ढ़ेरों खुशियाँ कबसे खडी है यहॉ बाहें फैलाकर सामने,
मासूमियत सजाकर तुम याद ना आते तो अच्छा था.
आज भी मंजर याद है, हमें सर पर सजाकर रख्खा था,
हमारी हर छोटी फ़िक्रमें तुम यूँ ना जलते तो अच्छा था.
सबकुछ भूल जानेकी हर कोशिश ना कामियाब रही,
तुममे बच्चों सी दिवानगी हमें ना दिखाते तो अच्छा था.
~ रेखा पटेल ‘विनोदिनी’
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