भंवर में ज्यादा लोग डूब जाते हैं तो कुछ लोग उभर जाते हैं
बड़ा पेचिदा सवाल है कि सब लोग आखिरमे किधर जाते हैं ?
राह चलते इन्ही राहोमे ना जाने रोज कितने लोग मिल जाते है,
बहुत संजीदा ये रिश्ते कोई बस जाते है कोई बिखर जाते है.
इस जमानेमे दौलतों की भूख हर वक्त सब पर हावी रहती है
लोग छोड़कर अपने गाँव का सुकून, आखिर क्यों शहर जाते हैं ?
देखो किस कदर छाया है फरेब अबतो दोस्तों के दरमियाँ भी,
बहोत बुरा माहोल फैला है, यहाँ आदमी आदमी से डर जाते है
सूरज की रोशनी घुप बनकर फैलती है हर जगह एक समान,
कितनी अजीब लगती बात गोरे धूपमें नहाते है, काले मर जाते है
मोहब्बतमें हुस्न और जवानी पर ना करना ईतना गुरुर कभी,
एक नज़र भरके देख लेना हमारे लोक परलोक सॅवर जाते है
ना शामिल करो बदनशीबो की गिनती में कभी हमारा नाम
सिर्फ आशिक ही जमाने में हर वक्त कुछ नया कर जाते है
~ रेखा पटेल ‘विनोदिनी’
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