बरसो के प्यासे दिल की प्यास बुझाने आया मुद्दतो के बाद .
कोई आवारा बादल अपनी चाह जताने आया मुद्दतो के बाद .
ज़िंदा प्यार को दफनाकर कब्र को आज तक ढका नहीं था,
खुला देख दरवाजा वो गूँगी दस्तक देने आया मुद्दतो के बाद .
रात में जो आँखे सोई नहीं थी उसके ख्वाबोंमें आकर रोया,
ज़रूरतों का वाक़या था, वो जान जलाने आया मुद्दतो के बाद .
जीते जी जिसको पाया नहीं उसे अपना कहने में खतरा क्या,
बेरूखी के अंदाज़ में वो चाह गिनाने आया मुद्दतो के बाद .
शीशमहल में जलती रही शमा उम्रके हर एक पड़ाव तक,
अब गिरते मीनारों को वो हाथ लगाने आया मुद्दतो के बाद .
कम्बख्त क़यामत के बाद आज महोब्बत का गाना रोने आया
हमने भी तोबा करली जब वो सुनाने आया मुद्दतो के बाद
~ रेखा पटेल ‘विनोदिनी’
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