बरसो के प्यासे दिल की वो प्यास बुझाने आया
मुद्दतो के बाद …
कोई आवारा बादल,फिर अपनी चाह जताने आया,
मुद्दतो के बाद …
ज़िंदा प्यार को दफना कर, कब्र को ढका नहीं,
खुला दरवाजा देख वो गूँगी दस्तक देने आया,
मुद्दतो के बाद …
रातभर जगी आँखें यें पलभर भी सोई नहीं,
उसके ज़हन में दर्द का वो गीत सुनाने आया,
मुद्दतो के बाद …
जीते जी पाया नहीं उसे अपना कहने में खतरा क्या,
बेगाना बनकर प्यारका वो क़र्ज़ चुकाने आया,
मुद्दतो के बाद …
शीशमहल में जलती रही शमा उम्रके हर पड़ाव तक,
अब गिरते मीनारों को फिर हाथ लगाने आया
मुद्दतो के बाद …
क़यामत के दिन कोई महोब्बत का गाना रोने आया
मुद्दतो के बाद…
हमने जब तोबा कर ली तब वो प्यार जताने आया
मुद्दतो के बाद ….
~ रेखा पटेल ‘विनोदिनी’
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