बड़ी राज़दाँ और अजीब दुनिया है,राहे महोब्बत की
सोई हुई रूहको कब्रसे जगाती, ये आहे महोब्बत की
यहाँ हर कदम हर राह पर है शिकस्त पहला साथी
प्यार ही सहारा है, जो मिल जाए पनाहें महोब्बत की
इन्तज़ार में अगर नींद आ गई उसपर भी इल्जाम लगे
कोई रस्म निभानी नहीं आती उसे राहे महोबत की
गुजर चुके सेंकडो काफिले, इस फनाह की डगर पर
अपनी हस्ती मिटाकर फिर फैलाये बाहें महोब्बत की
उलझन अपनी आईने को बताते, कभी कतराते नहीं
ज़माना अब काबिल नही, समजे चाहे महोब्बत की
आँसूओ की जकात भरते, वो गरीब बनते है शोख से
फ़ना होना फ़ितरत है, झुकाते नहीं निगाहें महोब्बत की
~ रेखा पटेल ‘विनोदिनी’
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