अपनी होकर अजीब लगती कभी कभी
नहीं समजमें जिन्दगी आती कभी कभी
बाहर से हँसती छुपाकर भीतर का भेद
तन्हाई होते छुपके से बहेती कभी कभी
अनजानी डगर पर खुशियो से हरी भरी
अपनो संग भी अलग रहेती कभी कभी
हो दिलमे होसला, सपनोकी उड़ान ऊची
वही कदमोमे मंजिल झुकती कभी कभी
बेजुबान बिकती रहे शराफ़त यही कही
बात बुजर्गों कि राह दिखाती कभी कभी
~ रेखा पटेल ‘विनोदिनी’





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