साथ गर तेरे बितायें जो न पल होतें,
तब भी हम जल ही गये होतें जो जल होतें.
है यही मस्लाँअ तुम्हे चाहते है हम,
काश इन मस्लाँअ के भी कुछ जो हल होतें.
पाँव मेरी निंद के हर बार कटतें हैं,
ख्वाब वर्ना यूं ही कोहनियों के बल होते?
होंसला रख के अगर जो रो लिया होता,
तो उगे अश्कों के पानी से ही फल होतें.
आप वैसे आजकल ‘कुछ भी नहीं’ तो है,
काश हम ‘कुछ भी नहीं’ भी आजकल होतें,
– अनिल चावड़ा
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