आज बादलों की पूरी फ़ौज आकाश पर छा गई
घिरके आई ये घनघोर घटा जो नभ पर छा गई
बादल घुमड़-घुमड़ गाने लगे, देखो शोर मचाने लगे.
बिजलियाँ आंखमिचौली खेलती और मचलती रही
नन्हे-मुन्नों छीटोंसे शुरू ये वर्षा टूटकर झरती रही
रिमज़िम घुंघरू बाँधकर बारिश धूम बरसाने लगी.
छोड़के सब शर्मो हया धरती मुग्धा सी नहाने लगी
चारो तरफ खिले फूलों पर खुशहाली लहेराने लगी.
फिर में क्यूँ इतनी स्तब्ध हु, फिर कहाँ में खो गई ?
वहीं उजले दिनोंका टुकड़ा यादमें कुछ कह गया
एक जरासी बात पर अपनी कहानी दोहरा गया
निकलकर अपने आजसे में वहाँ तक जा पहुँची
दिलका कौना जो प्यासा था उसे भिगोने चली.
अब सचमें सावनके साथ हार जितकी होड़ लगी.
~ रेखा पटेल ‘विनोदिनी’
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