आईने में अपना अक्स देखकर में हैरान थी
ना कोई उसके आगे था, ना कोई पीछे था
अंदर झाँखकर देखा मै ही थी…
आज सोचा चलो मैं खुद आईना बन जाऊ
अपना चेहरा बहोत देखा, सबका चहेरा पढ़कर देखू
बनकर आईना सच बोलकर देखू ….
पहले आई बच्चोकी टोली, मैंने बच्चों कहकर पुकारा था
उन्हें मनमानी करनी थी जल्दी बड़ा बनना था ,
वो मुँह फुलाके निकल गई ….
फिर आई इठलाती जवानी, जो रंगरूप पर इतराती थी
तुम हो नहीं इतनी प्यारी जो सोचकर तुम आई थी,
गुस्सेमे आकर वहाँ से चली गई …
अब झूमती आई ढलती जवानी, जो बड़ी मगरूर थी
मैंने सच्ची बात बताई थी, बालोकी सफेदी गिनाईं थी
मुझे झूठा बताके निकल गई
अब किसको दिखाएँ आईना, क्या कोई समज पायेगा ?
ना हमराज़ हैं ना दोस्त यहाँ, ना किसीको सचसे प्यार है ,
मेरे एक आह निकल गई …
आया बुढ़ापा गाता यहाँ, “जो आया है इक दिन जायेगा”
मुझे देख वो मुस्कुराने लगा, मेरे जख़्म वो सहलाने लगा
उसकी झुर्रिया राज़ बताके गई.…
आइना बनाना आसान नहीं
~ रेखा पटेल ‘विनोदिनी’
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