आज अरसे बाद,
पुरानी ख्वाहिश की,
गलियों से गुजरा.
पैर रखते ही गलीमें
सामना हुआ,
बीते मौसम का.
हवा सर्द थी,
मेने यादोकी चादर लपेट ली.
सामने आई
अजब खामोशी,
मेने घड़कनों का शोर बढ़ा दिया.
बस थोड़ी देर चला,
पुराना किस्सा मिल गया
दो पल को साँसे रुक सी गयी
वहीं दिलको तसल्ली मिलने आई
बड़े प्यार से बोली,
पुराने किस्सेमें यही होता है प्यारे.
में सोचमें पड गया !
हा ! वो किस्सा तो पुराना था.
फिर भी हवाओ में.
अब भी वो महक बाकी क्यों है?
~ रेखा पटेल ‘विनोदिनी’
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