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क्या ज्यादा आवश्यक – किसीकी जन या फिर हमारा स्वार्थ…?


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क्या ज्यादा आवश्यक – किसीकी जन या फिर हमारा स्वार्थ…?


भारत अकेला ऐसा देश है जहाँ किसी की जान बचने से ज्यादा लोगो को सिगार का एकाद कस जल्द से जल्द लेने की तड़प लगी रहती है।

नही लिखना चाहता में ऐसे मुद्दों पर, लेकिन कुछ न कुछ निकल ही जाता है। आज जब घर की ओर आ रहा था, तब एक नजारा देखा। तभी यह ऊपर लिखा कथन कह रहा हु।

मेने देखा कि एक बाइक सवार एम्ब्युल्स को काफी समय तक मार्ग न देकर तेज गति से आगे आगे जा रहा था। वेसे तो हमारे देश मे अम्ब्युलन्स का बाप भी आ जाये तो जगह देने की तहजीब अभी इतनी नही डेवलोप हुई ले, लेकिन फिर भी कुछ तो असर है। जगह तुरंत नही देते लेकिन दे तो देते ही है। और आप जानते है कि वेसे तो में बहोत पॉजिटिव विचारो वाला इंसान हु। लेकिन जब अम्मा कहने लगी कि कितने निर्लज्ज बच्चे होते है आज कल, जिन्हें अपनी अय्याशी के सामने किसीकी जान तक नही देखती। तो मैने अम्मा के ताने पर सिर्फ यह कहा कि बिचारा शायद किसी की जान से ज्यादा मूल्यवान काम हेतु जा रहा होगा। (वेसे भी हम अभिप्राय जल्द बना लेते है। सही और गलत दोनो ही।)

लेकिन जब आगे कुछ दूरी पर हमने निकलते वक्त उसे एक पार्लर से सिगार के धुएं उड़ाते हुए देखा, तो पता चला कि आज के युवा वर्ग के लिए सिगार किसी इंसान की जान से ज्यादा कीमती है। अफसोस हुआ के अम्मा का अभिप्राय हमने नही सुना। वह सच ही तो कह रही थी।

अब सवाल यह उठता है कि अय्यास ओर गेर जिम्मेदार जीवन जीने वाले यही वो युवान होते है जो देश बदलने की ओर मानवता की डींगे हाँकते फिरते है। लेकिन यह डींगे सिर्फ गज दंत की तरह दिखावे के लिए होती है। वास्तविक जीवन मे तो वे भी उन्ही का हिस्सा होते है जिसका वह विरोध करते है। अब भ्रष्टाचार से लड़ती हमारी सुरक्षा संस्थान ही देख लो। इनकी लड़ने की कोशिशें भी ज्यादातर गज दंत की तरह दिखावे की होती है।

कुछ भी कर ले, देश का युवा सड़ने लगा है। समझ ही नही आ रहा कि आज का युवा किस ओर जा रहा है। उसे न किसी की परवाह है न अपने भविष्य की चिंता। न वह महात्मा बनना चाहता है न वह इज्जतदार ओर कृपालु या जिम्मेदार व्यक्ति। फिर देश बदलने की उम्मीद हम किस आस पर लगाते है। सरकार को हम किस मुद्दे पर कोषते रहते है। जब कि बदलाव तो हम खुद ही नही होने देना चाहते।

बदलाव हम नही चाहते, क्योकि यह हमारे कम्फर्ट जॉन में नही आता। देश जाए भाड़ में हमे अपने कम्फर्ट जॉन को नही छोड़ना है। हम एम्ब्युल्स आने पर उस व्यक्ति की जान तो नही बचा शकते, लेकिन बाइक को जरा साइड कर उसकी मदद कर शकते है। लेकिन तब उसकी जान से ज्यादा हमें सिगार ओर नशे की तलप अहम लगती है। ओर फिर उन्ही धुंए के साथ हम बात करते है देश बदलाव और देश हित की…? किस मुह से हम वह शब्द निकालते है, उसका जरा तो खयाल कीजिए…?

हम अपना कचरा खुद नही उठा शकते ओर हम स्वच्छता की डींगे हाँकते है। हम नियम कायदों का पालन नही कर शकते, ओर हम भ्रष्टाचार के लिए सरकार को कोषते हे। हम अपने कम्फर्ट जॉन से निकलना नही चाहते, ओर लोगो को सुधारने के झण्डे लिए गुमते है। खुद सुधरने का तो कभी प्रयास नही ओर निकल पड़ते है दुनिया बदलने।

थू है ऐसे युवा पर, जो देश और परिवार का नही हो शकता वो क्या किसीका पति/पत्नी, प्रेमी/प्रियसी, दोस्त या माता/पिता बन पाएगा। अगर इसी सोच से हम आगे बढ़ेंगे तो भविष्य बहोत रक्तरंजीत ओर भयावह ही होगा यह तय है।

जब हम किसीको भाई नही कह शकते तो किसीसे हमदर्दी की उम्मीद किस बुनियाद पर कर शकेंगे। हम किसीको मान नही दे शकते फिर किस उम्मीद पर हम अपने सन्मान की आशा करते है। जब हम अपने आंतरिक ऊँच नीच ओर नकारात्मक भावो से ऊपर नही उठ शकते, तो देश और युवा को क्या खाख बचाएंगे।

कहना तो बहोत कुछ हो शकता है, लेकिन अगर आप खुद आगे नही समझ शकते तो क्या खाख आप अब तक की हुई इस कथा को समझे होंगे।

गिन आती ऐसे युवाओ से जिन्हें न तो खुद की पड़ी है न परिवार और देश की। अपने लिए तो कुत्ते भी जीते है, फिर इंसान होने का ओर स्वतंत्रता का दावा तुम किस बिनाह पर मांग रहे हो। अधिकार चाहिए तो जिम्मेदारिया निभाना भी शिखे। आज तो ये सब नही समझ आएगा, लेकिन जब सब आप पर आएगा और दुनिया तमाशा देखेगी इसी तरह जिस तरह आज आप देख रहे हो। तब आपको अपने आप पे भी गिन आएगी और इस संसार ओर मानसिकता पर भी।

तो बदलाव की शरुआत खुद से करे। यह शाश्वत सत्य है कि भूतकाल वर्तमान समय मे हमारे बस में नही होता, लेकिन भविष्य का निर्माण तो हम वर्तमान समय मे खुद करते है। 😍😍

~ सुलतान सिंह ‘जीवन’
( १२:४० pm, १४ नवम्बर २०१८ )

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