आज भी याद हैं मुजे हमारे वो सतरंगी दिन। उन दिनों मंगनी के बाद लड़के-लड़कियों को आपस में मिलना-मिलाना बेहद कम कर दिया जाता था। कभी-कभी तो मंगनी के दिन के बाद सीधा ही सुहागरात पर दोनों एक दुसरे को देख पाते थे। और ऐसे कई चक्करों में किसीकी बबली किसी की बीवी, तो किसी का राजू किसी का पति बन जाता था!
पर हमारी बात अलग थी! हम दोनों बहोत पहेले से – बचपन से – एक दुसरे को जानते थे। बचपन में साथ में स्कुल जाना, साथ में बाजार जाना, साथ में खेलना, साथ में लड़ना-झगड़ना, और साथ ही में प्यार में पड़ना। हमारे प्यार के पनपने में छज्जो का बड़ा हाथ था। और ये छज्जो और बालकनी वाला प्यार सिर्फ वही लोग समज पाते हैं, जिनके घर के आसपास उनका कोई पसंदीदा व्यक्ति बसता हो।
में बचपन से ही समंदर जितना जिद्दी था। और वो जैसे कोई शांत सी मछली। पर कभी कभी मुझे वो खुद से भी ज्यादा जिद्दी लगती थी। पर उसका जिद करने का तरीका कुछ अलग था। वो जब जिद पर उतरती तो खुद की बात टाल कर सामने वाले की बात को पूरा करने पर अड़ी रहती !
कुछ ऐसा ही हमारी शादी की बात को लेकर हुआ था !
हमारे बचपन से ही हम दोनों के परिवार आपस में घुले-मिले हुए थे। और रोचक बात तो ये थी की हम दोनों के घरवालों ने हमे एक दुसरे के लिए पसंद किया था ! मतलब हमारी शादी लव-कम-अरेंज मेरेज सी थी। जैसे की मैंने कहा, हम बहुत पहेले से एक दूसरे को जानते थे, शायद इसीलिए हमारे परिवारों को हमारा मंगनी के बाद मिलते रहने पर भी कोई खास एतराज़ नहीं था। पर हां, अब जब हम मिलने लगे थे तब कुछ कुछ – बहोत कुछ – बदल गया था। एक अनकही सी झिजक, शरम हमारे बिच आ खड़ी हुई थी। कभी कभी जब हम पास के बागीचे में घुमने जाते तब घंटो तक बेठे रहने के बाद भी बहोत कम बात कर पाते थे। मुझे उसके इस बर्ताव पर कभी कभी चिड आती थी। मतलब की सिर्फ मंगनी की वजह से वो ये क्यों भूल जाती थी की वो मेरी मंगेतर होने से पहेले मेरी प्रियतमा, और दोस्त भी थी !
और ऐसा ही गुस्सा – चिड – मुझे उस पर तब आया, जब एक मुलाकात में उसने शादी के बारे में विस्तार से बात करनी शुरू की। मेरी और एक बार भी देखे बिना वो बोले ही जा रही थी। ‘शादी के दिन इस रंग का जोड़ा पहनूंगी। इस तरह से मेरी बारात आएगी। और उस से पहेले तिन दिन तक कार्यक्रम रखे जायेंगे। एक दिन महेंदी होगी, एक दिन संगीत, हल्दी, वगेराह वगेराह ! मैं उसकी ऐसी कई बातें बचपन से सुनता आया था। और ये जायज़ भी है, आखिर किस लडकी के अपनी शादी के लेकर ख्वाब नहीं होते ? उसके भी थे। पर मेरे कुछ अलग थे।
मैं बचपन से ही धरम-करम की बातों में थोड़ी कम रूचि लेता था। और शादी को लेकर मेरा यह मानना था की रजिस्टार मेरेज से बेहतर तरीका शादी के लिए हो ही नहीं शकता ! और ऐसा भी नहीं था की मैंने किसी को ये सारी बातें नहीं बताई थी। घर में माँ-बाउजी से लेकर मेरे दोस्त तक ये बातें जानते थे। और वो भी !
उस मुलाकात के दौरान मैंने उसे साफ़ शब्दों में ये बता दिया था की मुझे शादी को लेकर कोई ज्यादा खर्च करने में कोई दिलचस्पी नहीं हैं। मैं सीधे सादे तरीके से कोर्ट मेरेज करना चाहता हूँ।
उस वक्त तो उसने कुछ भी न कहा। और हम घर लौट आए। उस्सी शाम उसके घर वाले मेरे घर शादी की तवारीख वगेराह तय करने को आने वाले थे। ‘बड़ों की बातों में मेरा क्या काम?’ सोच कर मैं एक किताब लेकर छज्जे पर जा पंहुचा था। दरअसल मुझे किताब नहीं पर ‘उसे’ पढ़ना था ! पर वो आज छज्जे पर नहीं आई थी. ‘शायद किसी काम में होगी।’ सोचकर में किताब में जा डूबा।
उस रात सोने से पहेले माँ मेरे कमरे में आई थी। सर पर हाथ फेरते मुझे पूछ रही थी की ‘उसके’ परिवार वाले कोर्ट की तारीख लेने की बात क्यों कर रहे थे ? और तब जाके मुझे समज आया की आज शाम वो छज्जे पर क्यों नहीं आई थी ! और अब माँ को भी बात कुछ कुछ समज आ रही थी। वो मुझे बारबार समझा रही थी की मैंने ये कैसी जिद पकड़ रखी है ! और जब दोनों परिवार खर्च करने को राजी और सक्षम भी हैं, फिर दिक्कत क्या है !
पर बहोत प्रयासों के बाद भी मैं माँ को ये इतनी छोटी सी बात समजा न सका की मैं सीधे सादे तरीके से शादी करना चाहता था।
माँ कोई तीसरा रास्ता खोज कर दो दिन बाद फिर कमरे में आई। और कहेने लगी की धूमधाम से शादी क्र लेने के बाद जा कर कोर्ट में रजिस्टर करवा आयेंगे, और इस तरह से दोनों की इच्छा पूर्ण हो सकेगी। पर अब आप ही बताइए शादी तो एक ही बार की जाती है ना, फिर उसमे अपनी इच्छा के खिलाफ क्यों जाना ! मैं अपनी जिद पर टिका रहा, आखिर जिद्दी जो ठहरा !
मैंने तो माँ से यह तक कह दिया की अपनी होने वाली बहु से जा कर कह दे की वो मुझसे पहेले रजिस्टार शादी कर ले, फिर मैं पारम्परिक तरीके से उससे फिर से शादी करने को राजी हूँ !
और जब ये बात उस तक पंहुची तक उसे मेरी बात से रत्तीभर भी फेर न पड़ता हो उस तरीके से उसने मेरी माँ से कह दिया, ‘उन्हें दो बार ब्याह रचाने की जरूरत नहीं है. मैं एक ही बार – उनकी इच्छा के मुताबिक – शादी करने को तैयार हूँ !
और जब ये बात हमारे परिवार और दोस्तों में फैली तब सब उसकी वाह वाही करते नहीं थकते थे। और मुझे उस जैसी समजदार पत्नी मिलने पर भाग्यवान समजते थे ! और बात ये भी नहीं थी की उसमें कुछ गलत था। पर न जाने क्यों कुछ था जो मुझे अंदर से कुरेत रहा था ! सब मेरी मर्जी के मुताबिक हो रहा था, पर फिर भी मैं किसी अपराध भाव तले दबा जा रहा था। मुझे ये सोचते ही घुटन सी होने लगती की मैंने एक लडकी से उसके बचपन का कोई ख्वाब छीन लिया हो ! मनो जैसे मैं खुद को उसके ख़्वाब कुचलने वाला गुनेगार मान बैठा था।
दिन-ब-दिन शादी की तवारीख नजदीक आ रही थी, और मेरी घुटन बढती जा रही थी। और एक रात सोते वक्त मुझे विचार आया की वो लडकी सिर्फ मेरे लिए अपना सब कुछ – घर, माँ-बाप, परिवार, अपना बचपन, यादें,- पीछे छोड़ कर मेरी हमसफर बनने को मेरे साथ आ रही थी। माना की कई सदियों से ये दुनिया की रित के तौर पर चला आया है ! पर फिर भी !! और बदले मैं मैंने उसे पाने के लिए क्या छोड़ा ? कुछ नहीं ! उपर से उससे उसके बचपन से संजोये शादी के खवाब भी छिन लिए !! मुझे खुद पर घिन्न सी होने लगी…!
दुसरे ही दिन मैंने पारम्परिक तौर पर शादी करने को अपनी सहमती दे दी। और इस्सी के साथ दोनों परिवारों में ख़ुशी की लहर सी दौड़ गई। और मानो जैसे मेरे पिघलने का ही इन्तजार कर रही हो वैसे वो मुज पर रीझते हुए मुज से लिपट पड़ी।
और फिर कुछ चंद दिनों में दोनों परिवारों ने शादी की तैयारियां निपटाई। और बड़े ही धूमधाम से हमारी शादी हुई, ठीक वैसे जैसे उसका ख़्वाब था !
आज तो उन बातों को कई साल बीत गए हैं ! अभी इस्स वक्त मेरे सामने मेरे – हमारे – बच्चे, और उनके भी बच्चे हमारी पचासवी सालगिरह मनाने की तैयारीयों में जुटे हुए हैं ! आज तो वो हमारे बिच मौजूद नहीं है, पर कभी लगता ही नहीं की वो हमें अकेला छोड़ कर चल बसी है !
शादी के कुछ सालों बाद घर छुट गया, शहर छुट गया, कुछ अपना सा टूट गया। वो बचपन, बचपन की साथ बिताई यादे, सब अब धुंधला धुंधला याद है ! और उसकी निशानी के तौर पर अब सिर्फ मेरे पास हमारे बच्चे हैं, और है ये फोटो आल्बम – हमारी शादी का !
और हर वक्त की तरफ आज भी मेरी नजर उस एक फोटो पर जा चिपकी है, जिसमे वो दुल्हन के लिबास में, पुरे हाथों में रची मेहँदी को देखकर शरमाते हुए मुस्कुरा रही है ! और कोई भी औरत कितनी भी खुबसुरत क्यों न हो – मोटी, पतली, गोरी, काली, गरीब, अमिर, चाहे जैसी भी हो, – पर वो सब से खुबसुरत अपनी शादी वाले दिन ही लगती है ! और फिर चाहे भले मैं रजिस्टार मेरेज की बात पर अड़ा रहता, तो भी कोर्ट मेरेज के उन सादे कपड़ो में भी वो खुबसुरत तो लगनी ही थी ! पर इस्स आल्बम में संजोये रखे फोटोस की मुस्कुराहट का कारन उसके ख़्वाब साकार होने की ख़ुशी थी !
– Mitra ❤
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