मुझसे पहले भी ना जाने
कितनी बार रचाई गई ये कविता,
लिखा गया पुरा इतिहास ढाई अक्षर में.
जहाँ हरेक शब्द को सींचा जाता है,
दिलकी धड़कन से, लहू की रवानी में,
सिमट जाता है जीवन यही कहानी में,
बस प्रेम ही तो है…
पास ना होकर भी जो पास रहे,
बारिश की फुहारों में दिलको जलाए.
जो पंछियों की चहचहाट संग,
हवाओं की मीठी गंध में शामिल.
धरती से शुरू वो तारोके संग में मिले
बहेते झरनो की हर एक तरंग में घुलें
बस प्रेम ही तो है…
यह रंग, हर रंग पर है भारी,
वो जो उम्र के हर ढहेराव पर,
चेहरे को देता है लाली.
हर एक झुर्रियों को सहेलाता,
सफ़ेद उलझीं लझीं लटें सँवारता,
अंत तक जीवन को सार्थक करता,
बस प्रेम ही तो है…
– रेखा पटेल
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