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वाह रे तेरी खुदाई !!!
जुदा करने वाले को भी दुरिया खलती है कभी गर्मी में आग और बर्फ होकर सर्दियो में बरसा वो कभी
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लगता है बरखा की ऋतु आ गयी
रिमज़िम घुंघरू बाँध के देखो धूम बरसाने लगी.. छोड़कर शर्मो हया धरती बिन छाता नहाने लगी ..
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મહોબ્બતના કિનારા પર
કરૂં જો રોશની ઘરમાં તો કૈ રીતે કરૂં સિદ્દીક ? કરૂં દેવાઓને રાજી તો ત્યાં તહેવાર બેઠા છે.
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यूँ सालों बित गए
बारिशमें भीगना ठीक है, हम तो ओसमें भीगे है, हॅसते रोना, रोते हॅसना, यही जीवनकी मांग है.
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मेरी चुप्पीमें झाँखकर देख
तुम अगर आना चाहो तो पुकारलो वही कही दूरसे ही, हम गुम है तेरी यादोंके सायें तले, यही इस्तेहार निकले