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बरसो के प्यासे दिल
शीशमहल में जलती रही शमा उम्रके हर पड़ाव तक, अब गिरते मीनारों को फिर हाथ लगाने आया
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बरसो के प्यासे दिल की प्यास
कम्बख्त क़यामत के बाद आज महोब्बत का गाना रोने आया हमने भी तोबा करली जब वो सुनाने आया मुद्दतो के बाद
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बड़ी राज़दाँ और अजीब
इन्तज़ार में अगर नींद आ गई उसपर भी इल्जाम लगे कोई रस्म निभानी नहीं आती उसे राहे महोबत की
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ना मिलते तो अच्छा था ……
भूलने का बहाना करते, हम भूल सकते तो अच्छा था कभी खुद को खोते, सोचते ना मिलते तो अच्छा था
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धूप में ठंडी छाँव जैसा
भूलाकर अपने गम वो खुशियाँ देता है यार को बनकर नादाँ “प्यार”को जिन्दा रखता वो प्यार है.
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देखके तुमको ना देखा
आसाँ नहीं था वफ़ा नीभाना,पर बेवफाई कर ना शके दिलकी बातें दिलमें रखकर इश्कमें अपना साँझा दिया
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तेरी मौजुदगी का मेरी
अब मिलेंगे तो ना जाने देंगे युँ बाहरसे आपको सुनाएगे हमारी तनहाई के जो किस्से हजार है
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तूम अगर सामने हो
तूम अगर सामने हो मेरे, तो हर जगह ख़ास है. वरना जैसे, समंदरके सामने पानी और प्यास है.
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