-
आज की वास्तविकता, मेरे प्यारे भैया …
धागे को थोड़ा सजा देने से वो राखी नहीं कहलाती राखी तब कहलाती है वो जब तुम्हारी कलाई पे सजती है
-
-
कैसा कमाल करती है
ये ऑनलाइन वाली लाइट, देखो कैसा कमाल करती है, चोरी छुपे से उलटा, क्या है…? यही तो सवाल करती है,
-
-
अब तो दिलकी बात
अब तो दिलकी बात तुम्हे कहने से डर लगता है कही तुम रूठ गये तो फिर जीने से डर लगता है.
-
-
-
-
-
-
-
जिस शिद्दत से लगे हो खुदा ढूंढने
जिस शिद्दत से लगे हो, तुम ख़ुदा ढुंढ़ने में माहिर बनगए समजलो, अब तुम बुरा ढूंढने में
-
-
-
मेरे इश्क का रिश्ता
मेरे इश्क़ का रिश्ता उस और से गुज़र रहा हैं, में बेजान सी सड़क हूँ वो रेल सा चल रहा हैं ,
-
-
नारी की कश्मकश : अकल्पित
४५ से ५० की उम्र एक नारी के लिये बहुत ही कश्मकश भरी होती है। इस उम्र के दौरान वो अपने मासिक धर्म से भी निवृत्त होने लगती हैं और उम्र के एक नए पड़ाव
-
महाभारत : पांडवो का वनवास और अज्ञातवास
जब से इन्द्रप्रस्थ भोज के लिए कौरव और सबको आमंत्रित किया गया था, तब से ही इन्द्रप्रस्थ की चकाचोंध देखकर दोर्योधन हक्काबक्का सा रह गया था। खांडववन को इन्द्रप्रस्थ बनाया जा सकता था इसकी कल्पना भी शायद दुर्योधन ने नही की थी।
-
महाभारत : इन्द्रप्रस्थ की स्थापना
लाक्षागृह षड्यंत्र के बाद पुरे भारत वर्ष में पांडवो के मृत्यु के समाचार फेल चुके थे। दुर्योधन और शकुनी भी इसी बात से निश्चिंत थे, तब तक जब तक द्रौपदी का स्वयंवर नही हुआ।
-
महाभारत : द्रौपदी स्वयंवर
महाभारत कई पर्वो और प्रसंगों का साक्ष्य रहा हे। कुछ इसी प्रकार इसका प्रवाह भी इसी तरह बदलता संभलता रहा हे। लाक्षागृह वाले प्रसंग के बाद जो नया अध्याय पांडवो के जीवन में शुरू होने वाला था,
-
महाभारत : लक्ष्याग्रह षडयंत्र
दुर्योधन कतई यह नहीं चाहता था कि युधिष्ठिर हस्तिनापुर का राजा बने, अतः उसने अपने पिता धृतराष्ट्र से कहा की “पिताजी यदि एक बार युधिष्ठिर को राज सिंहासन प्राप्त हो गया, तो यह राज्य सदा के लिये पाण्डवों के वंश का हो जायेगा
-
महाभारत : एकलव्य कि गुरुभक्ति
एकलव्य को सदा ही एक उपेक्षित शिष्य के स्वरूप इतिहास यद् करता आया हे। यहाँ तक की आज भी हम शिक्षा के कई तरह के वार्तालाप के दरमियान एकलव्य और गुरु द्रोण के द्रष्टांत दर्शाते रहेते हे।
-
महाभारत : कर्ण का जन्म
कर्ण का लालन पालन बड़े स्नेह में होता रहा। उसका एक छोटा भाई भी था, जो कर्ण के बाद राधा की कोख से जन्मा था। कुमार अवास्था से ही कर्ण की रुचि अपने पिता अधिरथ के समान रथ चलाने कि बजाय युद्धकला में अधिक थी। उसने इसी वजह से युध्ध कला में अभ्यास शुरू किया।
-
महाभारत : पाण्डु बने हस्तिनापुर के राजा
ऋषि-मुनियों की बात सुन कर पाण्डु अपनी पत्नी से बोले, हे कुन्ती अब लगता हे की मेरा जन्म लेना ही वृथा हो रहा है। क्योंकि सन्तानहीन व्यक्ति पितृ-ऋण, ऋषि-ऋण, देव-ऋण तथा मनुष्य-ऋण से मुक्ति नहीं पा सकता। क्या तुम पुत्र प्राप्ति के लिये मेरी सहायता कर सकती हो?