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સર્જક : શૂન્યથી આનંદની અખંડ શાંતિ તરફ….
જ્યારે કાઈ જ ન હતું, ત્યારે મારે ક્યાંક મારો સમય કાઢવો હતો. જો કે સોશિયલ મીડિયાના યુગમાં સમય કાઢવા ઘણુંબધું હાથવગું હોય જ છે, પણ પ્રોડકટિવ ટાઈમ કેમ કરીને કાઢવો એની વિચારધારમાંથી સર્જકનો જન્મ થયો.
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खयालो में खोई हुई सी
गुमनाम, हसीन ओर खयालो में खोई हुई सी, महोबत न सही, इकरार-ए-इश्क से गिरी हुई सी,
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તો એ મૌનને નામ આપવું છે શું કામ…?
જો સબંધ પામવાથી પરે છે આપણો, તો આ સંબંધ સાક્ષ રાખવો જ છે શું કામ…?
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कैसा कमाल करती है
ये ऑनलाइन वाली लाइट, देखो कैसा कमाल करती है, चोरी छुपे से उलटा, क्या है…? यही तो सवाल करती है,
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આવી એકવાર લડી જા…
ભલે બે-ચાર ડગલાં જ ચાલ અને પછી તું પડી જા, શક્ય ન હોયને બોલવું, તો આવી એકવાર લડી જા,
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महाभारत : पांडवो का वनवास और अज्ञातवास
जब से इन्द्रप्रस्थ भोज के लिए कौरव और सबको आमंत्रित किया गया था, तब से ही इन्द्रप्रस्थ की चकाचोंध देखकर दोर्योधन हक्काबक्का सा रह गया था। खांडववन को इन्द्रप्रस्थ बनाया जा सकता था इसकी कल्पना भी शायद दुर्योधन ने नही की थी।
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महाभारत : इन्द्रप्रस्थ की स्थापना
लाक्षागृह षड्यंत्र के बाद पुरे भारत वर्ष में पांडवो के मृत्यु के समाचार फेल चुके थे। दुर्योधन और शकुनी भी इसी बात से निश्चिंत थे, तब तक जब तक द्रौपदी का स्वयंवर नही हुआ।
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महाभारत : द्रौपदी स्वयंवर
महाभारत कई पर्वो और प्रसंगों का साक्ष्य रहा हे। कुछ इसी प्रकार इसका प्रवाह भी इसी तरह बदलता संभलता रहा हे। लाक्षागृह वाले प्रसंग के बाद जो नया अध्याय पांडवो के जीवन में शुरू होने वाला था,
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महाभारत : लक्ष्याग्रह षडयंत्र
दुर्योधन कतई यह नहीं चाहता था कि युधिष्ठिर हस्तिनापुर का राजा बने, अतः उसने अपने पिता धृतराष्ट्र से कहा की “पिताजी यदि एक बार युधिष्ठिर को राज सिंहासन प्राप्त हो गया, तो यह राज्य सदा के लिये पाण्डवों के वंश का हो जायेगा