Mahabharat


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  • महाभारत : दिव्यास्त्रो की प्राप्ति

    महाभारत : दिव्यास्त्रो की प्राप्ति

    हर कोई जानता था की युध्ध किसी भी हाल में अब नहीं टलने वाला है। क्योकि हस्तिनापुर की राजसभा में जो कुछ भी हुआ था और जो प्रतिज्ञा और श्राप उस सभा में दिए गए थे, उसके बाद वनवास ख़तम होते ही युध्ध का होना लगभग नियति बन चूका था

  • महाभारत : पांडवो की तीर्थ यात्रा

    महाभारत : पांडवो की तीर्थ यात्रा

    धर्मराज युधिष्ठिर ने उनका लोमश ऋषि का यथोचित आदर-सत्कार करते हुए स्वागत किया और उन्हें उच्चासन भी प्रदान किया। लोमश ऋषि युधिष्ठीर की चर्चा के बारेमें जानते थे इस लिए उन्होंने समजाया की पांडवगण आप लोग अर्जुन की चिंता बिलकुल न करे, वह पूर्णत सहकुशल हे।

  • અક્ષૌહિણી સેના

    અક્ષૌહિણી સેના

    આમાં ચારેય અંગોમાં ૨૧૮૭૦૦ સૈનિક બરાબર બરાબર સંખ્યામાં વહેંચાયેલા હતાં. પ્રત્યેક અંગનો એક પ્રમુખ પણ હોતો હતો. પત્તિ, સેનામુખ, ગુલ્મ તથા ગણના નાયક અધિરથી હોતાં હતાં.

  • महाभारत : पांडवो का वनवास और अज्ञातवास

    महाभारत : पांडवो का वनवास और अज्ञातवास

    जब से इन्द्रप्रस्थ भोज के लिए कौरव और सबको आमंत्रित किया गया था, तब से ही इन्द्रप्रस्थ की चकाचोंध देखकर दोर्योधन हक्काबक्का सा रह गया था। खांडववन को इन्द्रप्रस्थ बनाया जा सकता था इसकी कल्पना भी शायद दुर्योधन ने नही की थी।

  • महाभारत : इन्द्रप्रस्थ की स्थापना

    महाभारत : इन्द्रप्रस्थ की स्थापना

    लाक्षागृह षड्यंत्र के बाद पुरे भारत वर्ष में पांडवो के मृत्यु के समाचार फेल चुके थे। दुर्योधन और शकुनी भी इसी बात से निश्चिंत थे, तब तक जब तक द्रौपदी का स्वयंवर नही हुआ।

  • महाभारत : द्रौपदी स्वयंवर

    महाभारत : द्रौपदी स्वयंवर

    महाभारत कई पर्वो और प्रसंगों का साक्ष्य रहा हे। कुछ इसी प्रकार इसका प्रवाह भी इसी तरह बदलता संभलता रहा हे। लाक्षागृह वाले प्रसंग के बाद जो नया अध्याय पांडवो के जीवन में शुरू होने वाला था,

  • महाभारत : लक्ष्याग्रह षडयंत्र

    महाभारत : लक्ष्याग्रह षडयंत्र

    दुर्योधन कतई यह नहीं चाहता था कि युधिष्ठिर हस्तिनापुर का राजा बने, अतः उसने अपने पिता धृतराष्ट्र से कहा की “पिताजी यदि एक बार युधिष्ठिर को राज सिंहासन प्राप्त हो गया, तो यह राज्य सदा के लिये पाण्डवों के वंश का हो जायेगा

  • महाभारत : एकलव्य कि गुरुभक्ति

    महाभारत : एकलव्य कि गुरुभक्ति

    एकलव्य को सदा ही एक उपेक्षित शिष्य के स्वरूप इतिहास यद् करता आया हे। यहाँ तक की आज भी हम शिक्षा के कई तरह के वार्तालाप के दरमियान एकलव्य और गुरु द्रोण के द्रष्टांत दर्शाते रहेते हे।

  • महाभारत : कर्ण का जन्म

    महाभारत : कर्ण का जन्म

    कर्ण का लालन पालन बड़े स्नेह में होता रहा। उसका एक छोटा भाई भी था, जो कर्ण के बाद राधा की कोख से जन्मा था। कुमार अवास्था से ही कर्ण की रुचि अपने पिता अधिरथ के समान रथ चलाने कि बजाय युद्धकला में अधिक थी। उसने इसी वजह से युध्ध कला में अभ्यास शुरू किया।

  • महाभारत : पाण्डु बने हस्तिनापुर के राजा

    महाभारत : पाण्डु बने हस्तिनापुर के राजा

    ऋषि-मुनियों की बात सुन कर पाण्डु अपनी पत्नी से बोले, हे कुन्ती अब लगता हे की मेरा जन्म लेना ही वृथा हो रहा है। क्योंकि सन्तानहीन व्यक्ति पितृ-ऋण, ऋषि-ऋण, देव-ऋण तथा मनुष्य-ऋण से मुक्ति नहीं पा सकता। क्या तुम पुत्र प्राप्ति के लिये मेरी सहायता कर सकती हो?

  • महाभारत : धृतराष्ट्र, पाण्डु ओर विदुर का जन्म

    महाभारत : धृतराष्ट्र, पाण्डु ओर विदुर का जन्म

    माता सत्यवती को यह सब सुन कर अत्यन्त दुःख हुआ। लेकिन वह इस बारे में कुछ नही कर शकती थी। अचानक ही उन्हें अपने पुत्र वेदव्यास का स्मरण हो आया। सत्यवती के अंतरमन से स्मरण करते ही वेदव्यास स्वयं वहाँ उपस्थित हो गये।

  • महाभारत : द्रोणाचार्य ओर कृपाचार्य

    महाभारत : द्रोणाचार्य ओर कृपाचार्य

    गौतम ऋषि के पुत्र का नाम शरद्वान था। ओर सबसे महत्व पूर्ण की उनका जन्म बाणों के साथ ही हुआ था। इसका वर्णन हमे महाभारत के आदि पर्व में मिलता है। जन्म से ही वे कुछ अलग व्यक्तित्व के धनी थे। किसी कारण से उन्हें वेदाभ्यास में अन्य बालको की तुलना में जरा भी रुचि…

  • महाभारत : कुरु वंश की उतपत्ति

    महाभारत : कुरु वंश की उतपत्ति

    लेकिन हमारा इतिहास यानी कि महाभारत की कहानी तब शास्त्र से वर्णित है, जब से कुरु के वंश में शान्तनु का जन्म हुआ था। ओर इन्ही शान्तनु से गंगा नन्दन भीष्म उत्पन्न हुए है।


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