हजार बार कहा है, कहुंगा
तुमसे ही प्यार है ।
बार बार दोहराउगा।
कहना सुनना अच्छा लगता है।
बार बार मुस्कुराके तेरा पल्लु पकडना,
तीरछी नजरो से युं देखके अनदेखा करना।
हाथोके कंगनसे खेलना, चुडीकी खनखनाटसे ध्यान खींचना,
बालोका लहराना, लटोको हाथोसे संवारना,
तो कभी जुल्फोसे चेहरा ढकना।
तुम्हारीये शोख अदाए, कातील नजर..
उफ….. कया कयां बयां करु,
तुम्हारी पायल की रुम झुम,
पैरो से जमीन कुरेदना।
माथेकी चमकती बिंदीया,
सर सर सरकती चुनर।
पलको के झुकाने का अंदाज,
वो प्यारी नजर,
प्यारका सागर।
हाथोंमे महेंदी की सजावट,
होठोंपे गुलाबी सुर्खी प्यारीसी,
गालोंपें प्यारकी परछाई ।
हा! मुझे पसंद है तुं तेरी हर अदा,
तारीफ तेरी करना पसंद है,
सुनकर तेरा लज्जाना बेहद पसंद है।
प्यारी सी हल्कीसी छुहन तेरी,
तेरा नजरे जुकाना,
दोनो हाथसे मुंह ढकना,
शरमा के हौले से हाथ छुडाना,
जाओ…! तुम बडे वो हो कहेना…
उफ!…मर गया दिवाना तेरी यही अदा पें….
‘काजल’ तेरा ख्वाबो में आना.
ख्वाबो को हकीकत में बदलना,
जीना तेरे साथ, तेरा हाथ थामके चलना,
समंदर की गीली रेत पे वो दूर तक चलना,
बस यही बार बार दौहराना पसंद है।
~ किरण पियुष शाह “काजल”